आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है, कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है; रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ; रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;
Beautiful poem by Harivansh Rai Bachhan यहाँ सब कुछ बिकता है , दोस्तों रहना जरा संभाल के !!! बेचने वाले हवा भी बेच देते है , गुब्बारों में डाल के !!! सच बिकता है , झूट बिकता है, बिकती है हर कहानी !!!
भरे सावन में रेगिस्तान लगता है, ये घर मेरा खाली मकान लगता है। ******************************** Bhare saawan mein registaan lagta hai, ye ghar mera khaali makan lagta hai. - Naseeb (movie)
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