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Showing posts from February, 2015

Poore ka Poora aakash (पूरे का पूरा आकाश)

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Poem by Gulzar for the movie Dus Kahaniyaan पूरे का पूरा आकाश घुमाकर बाज़ी देखी मैंने, काले घर में सूरज रख के तुमने शायद सोचा था मेरे सारे मोहरे पिट जायेंगे। मैंने एक चिराग जला के अपना रास्ता खोल लिया।

Bhool jaate hain (भूल जाते हैं)

जाने क्यों लोग हमें आजमाते है, कुछ पल साथ रहने के बाद दूर चले जाते है, सच ही कहते है लोग की सागर के मिलने के बाद, लोग बारिश को भूल जाते हैं। 

Na kijiye (न कीजिये)

आंसुओं को पलकों पे लाया न कीजिये, दिल की बातें हर किसी को बताया न कीजिये, लोग मुट्ठी में नमक लिए फिरते हैं, अपने हर ज़ख्म दिखाया न कीजिये।

Jazbaat (जज्बात)

पत्थर की है दुनिया जज्बात नहीं समझती, दिल में क्या है वो बात नहीं समझती, तनहा तो चाँद भी है सितारों के बीच, पर चाँद का दर्द वो रात नहीं समझती।

Wafa (वफ़ा)

जाने क्या सोच के लहरे साहिल से टकराती हैं और फिर से लौट जाती हैं, समझ नहीं आता के वो किनारो से बेवफाई करती हैं या फिर लौट के समुन्दर से वफ़ा निभाती है।

Saza (सजा)

रोने की सजा न रुलाने की सजा है, ये दर्द मोहब्बत को निभाने की सजा है, हस्ते है तो आँखों से निकल आते है आंसू, ये उस शख्स से दिल लगाने की सजा है।

Jaante Hain (जानते हैं)

हम फूल नहीं पर महकना जानते हैं, बिन रोये ग़म को भुलाना जानते हैं, लोग खुश होते हैं हमसे, क्यूंकि बिना मिले ही हम रिश्ते निभाना जानते है।

Phir Bhi (फिर भी)

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Lines by Jagjit singh : किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी, ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी। हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है, नयी नयी सी है कुछ तेरी रह-गुज़र फिर भी।

Dil ko kya ho gaya (दिल को क्या हो गया)

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A ghazal by Jagjit Singh : दिल को क्या हो गया खुदा जाने, क्यों है ऐसा उदास क्या जाने। कह दिया मैं ने हाल-इ-दिल अपना, इस को तुम जानो या खुदा जाने। जानते जानते ही जानेगा,

Khaali Samandar (खाली समंदर)

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Lines by Gulzar from the movie dus kahaniyaan उसे फिर लौट के जाना है ये मालूम था उस वक़्त भी, जब शाम की सुर्ख-ओ-सुनहरी रेत पर वो दौड़ती आई थी। और लेहराके यूँ आगोश में बिखरी थी जैसे पूरा का पूरा समंदर लेकर उमड़ी है। उसे जाना है ये वो भी जानती तो थी मगर हर रात फिर भी  हाथ रख कर चाँद पर खाते रहे कसमें। न मैं उतारूंगा अब साँसों के साहिल  से, न वो उतारेगी मेरे आसमान पर झूलते तारों के पींगों से।

Raat aankhon mein dhali (रात आँखों में ढली)

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A ghazal by Jagjit Singh... रात आँखों में ढली पलकों पे जुगनू आये, हम हवाओ की तरह जाके उसे छू आये।  बस गयी हैं मेरे एहसास में यह कैसी महक, कोई खुशबू  मैं लगाऊं, तेरी खुशबू आये।

Ishq ka Samundar (इश्क का समंदर)

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  इश्क का समंदर भी क्या समंदर है... जो डूब गया वो आशिक... जो बच गया वो दीवाना !!! जो तैरता ही रह गया वह पति!!!!