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Showing posts from August, 2014

Toofan (तूफ़ान)

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कह दो समुंदर से मुझे, जरुरत नही उन लहरों की... बस एक बीवी ही काफी है, ज़िन्दगी में तूफ़ान लाने के लिए...

Teri chahat

तेरी चाहत में हम, दर-बदर हो गये ! सारी दुनियाँ से भी , बेखबर हो गए !! सज सँवर तुम सनम सैफई हो गयीं ! हम उजड़ कर, मुजफ्फर नगर हो गए..

Katal (कत्ल)

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अर्ज़ किया है .... वो जहर देकर मारते तो, दुनिया की नज़र में आ जाते, अन्दाज़े कत्ल तो देखो, हमसे शादी ही कर ली !!!!

Khushboo jaise log mile (खुशबू जैसे लोग मिले)

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This one is from an album with Ghulam Ali, composed by Gulzar : खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में, एक पुराना खत खोला अनजाने में। शाम के साये बलिश्तों से नापे हैं, चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में।

Katra (कतरा)

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तुम्हारे गम की डली उठाकर, जुबां पे रख ली है, देख मैंने। ये कतरा  - कतरा पिघल रही है, मैं कतरा -कतरा ही जी रहा हूँ।

Kya hoga (क्या होगा)

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  क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा? हर वक़्त क्यों सोचें की बुरा होगा, बढ़ते रहे मंज़िलों की ओर हम, कुछ भी न मिला तो क्या होगा, तज़ुर्बा तो नया होगा....

Jahan pe chhod diya (जहाँ पे छोड़ दिया)

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सजा पे छोड़ दिया, जहाँ पे छोड़ दिया, हर एक काम को हम ने खुदा पे छोड़ दिया। वो हम को याद रखे या फिर भुला दे, उसी का काम था, उस की रज़ा पे छोड़ दिया।

Humdum (हमदम)

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A poem by Gulzar. Context : An old tree which has been his companion since childhood, is being cut down... मोड़ पे देखा है वो बूढा-सा एक पेड़ कभी ? मेरा वाक़िफ़ है, बहुत सालों से मैं उसे जानता हूँ। जब मैं छोटा था तो इक आम उड़ाने के लिए, परली दीवार से कन्धों पे चढ़ा था उसके, जाने दुखती हुई किस शाख से जा पाँव लगा, धाड़ से फ़ेंक दिया था मुझे नीचे उसने, मैंने खुन्नस मैं बहुत फेंके थे पत्थर उस पर।

Dil dhadakne ka sabab (दिल धड़कने का सबब)

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 A Ghazal sung by Ghulam Ali : दिल धड़कने का सबब याद आया, वह तेरी याद थी अब याद आया। आज मुश्किल था सम्भलना ऐ दोस्त, तू मुसीबत में अजब याद आया।

Tiranga rehne do (तिरंगा रहने दो)

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ये पेड़, ये पत्ते, ये शाखें भी परेशान हो जाएं ! अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं.... सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए.., न जाने कब नारियल हिन्दू और खजूर मुसलमान हो गए......

Bauchaar (बौछार)

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  A Gulzar composition from the Movie Dus Kahaniyaan (Love Dale) : मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको, तेरा चेहरा भी धुंधलाने लगा है अब तख़ैयुल में, बदलने लग गया है अब वो सुबह-ओ-शाम का मामूल भी, जिसमें तुझसे मिलने का भी एक मामूल शामिल था।

Intezaar (इंतज़ार)

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इंतज़ार कर भी लें, गर पता हो की इंतज़ार कब तक है, उस इंतज़ार का भी क्या मज़ा, की तड़प भी है, और पता भी नहीं...

Huzur iss kadar (हुज़ूर इस कदर)

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Gulzar composition from the movie Masoom : हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिए, खुले आम आँचल न लहरा के चलिए। कोई मनचला गर पकड़ लेगा आँचल, ज़रा सोचिये आप क्या कीजियेगा, लगा दे अगर, बढ़ के ज़ुल्फ़ों में कलियाँ, तो क्या अपनों ज़ुल्फ़ें झटक दीजियेगा।

Qatra Qatra (क़तरा-क़तरा)

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Gulzar's composition for the movie Ijaazat : क़तरा-क़तरा मिलती है, क़तरा-क़तरा जीने दो, ज़िन्दगी है (ज़िन्दगी है), बहने दो (बहने दो), प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो। कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था, नींद में थी, तुमने जब छुआ था, गिरते-गिरते बाहों में बची मैं,

Ek akela is shehar mein (एक अकेला इस शहर में)

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Gulzar's composition for Gharonda: A stranger in a new city.... एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में, आब-ओ-दाना ढूंढता है, आशियाना ढूंढता है। दिन खाली-खाली बर्तन है, और रात है जैसे अँधा कुआं, इन सूनी अँधेरी आँखों में, आंसू की जगह आता है धुंआ।

Faasle aise bhi honge (फासले ऐसे भी होंगे)

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A beautiful Ghazal sung by Ghulam Ali : फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था, सामने बैठा था मेरे, और वो मेरा ना था। वो की खुशबू की तरह फैला था मेरे चार सू, मैं उसे महसूस कर सकता था, छु सकता न था।

Iss se behtar Nazm kya hogi (इस से बेहतर नज़्म क्या होगी)

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नज़्म उलझी हुई है सीने में, मिसरे  अटके हुए है होंठों पर, लब्ज़ कागज़ पर बैठते ही नहीं, उड़ते रहते है तितलियों की तरह,