आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है, कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है; रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ; रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;
Beautiful poem by Harivansh Rai Bachhan यहाँ सब कुछ बिकता है , दोस्तों रहना जरा संभाल के !!! बेचने वाले हवा भी बेच देते है , गुब्बारों में डाल के !!! सच बिकता है , झूट बिकता है, बिकती है हर कहानी !!!
मैं रोजगार क सिलसिले में, कभी कभी उसके शहर जाता हूँ, तो गुज़रता हूँ उस गली से, वो नीम तरीक सी गली। और उसी के नुक्कड़ पे, ऊंघता सा पुराना खम्बा, उसी के नीचे तमाम सब, इंतज़ार कर के, मैं छोड़ आया था, शहर उसका।
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Siyaram Shah
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