Mera Ghar (मेरा घर)


 
मेरा घर
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आँखो मे चमक आ जाती है ,
गली के मोड़ से दिखता है जब मेरा घर..

फर्श पे लेट के भी आ जाती है नींद जहाँ ,
ममता से सजा वो पलंग है मेरा घर...

माँ के शॉल की पहचानी हुई खुशबू ,
पिताजी की सख़्त डांट है मेरा घर ..

बिना सिलवट के बिस्तर की चादर ,
सलीके से पड़ा सब समान है मेरा घर ..


हिन्दी के अख़बार मे लिपटी मंदिर की माला ,
सुबह की अदरक वाली चाय है मेरा घर ..

गर्मी की झुलसती रात, और छत पे बिछी चटाई ,
पंखे से आती आवाज़ है मेरा घर..

पसीने मे नहाती रोज माँ रसोई मे ,
पैदल घर को आते पिताजी है मेरा घर ...

बिजली पानी के बिल की भागदौड़ ,
सोफे पे पसरा हुआ रविवार है मेरा घर...

छज्जे पे गिरता बारिश का पानी,
आँखो से टपकता प्यार है मेरा घर ...

रिमोट को ले कर बहन से झगड़ा ,
टंकी पे अटकी हुई पतंग है मेरा घर ..

छाले लगे हाथो से परोसी गरम रोटी,
त्योहारो पे लगे नए पर्दे है मेरा घर ..

बुरी नज़र से बचाता वो नीबू मिर्च दरवाजे पर,
भगवान के लिए भी 2 वक़्त है मेरा घर..

महीने भर की रद्दी से जमा पैसे की खुशी,
किस्तो पे लिया वो नया टीवी है मेरा घर..

सब दर्द का इलाज वो लौंग वाला तेल,
सब्जी को मोल भाव करती मेरी माँ है मेरा घर ...

चूहो को पकड़ने की नाकाम कोशिशे हजार ,
छत की तारो पे सूखती चादर है मेरा घर..

लाख माना करने पे भी दूध का ग्लास ,
हर परीक्षा से पहले दही चीनी है मेरा घर ..

देखने मे छोटा हो चाहे ,
पर खुशियो से भरा है मेरा घर ...

मेरा वजूद, मेरी आदत है ,
मेरी पहचान है मेरा घर ....

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