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Aahista chal zindagi (आहिस्ता चल ज़िन्दगी)

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आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है, कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है; रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ; रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हसाना बाकी है ;

Mera Ghar (मेरा घर)

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  मेरा घर ------------------- आँखो मे चमक आ जाती है , गली के मोड़ से दिखता है जब मेरा घर.. फर्श पे लेट के भी आ जाती है नींद जहाँ , ममता से सजा वो पलंग है मेरा घर... माँ के शॉल की पहचानी हुई खुशबू , पिताजी की सख़्त डांट है मेरा घर .. बिना सिलवट के बिस्तर की चादर , सलीके से पड़ा सब समान है मेरा घर ..

Koi Deewana kehta hai (कोई दीवाना कहता है)

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Popular poem by Poet Kumar Vishwas :  रंग दुनिया ने दिखाया है निराला, देखूँ, है अँधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँ आइना रख दे मेरे हाथ में,आख़िर मैं भी, कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ जिसके आँगन से खुले थे मेरे सारे रस्ते, उस हवेली पे भला कैसे मैं ताला देखूँ

Ek Prashn, Ek Uttar (एक प्रश्न, एक उत्तर)

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प्यार कभी एकतरफा न होता है न होगा, कहा था मैंने। दो रूहों की एक मिलन की जुड़वां पैदाइश है यह, प्यार अकेला जी नहीं सकता। जीता है तो दो लोगों में, मरता है तो दो मरते हैं।

Panah (पनाह)

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From the Book Pukraaj by Gulzaar : उखाड़ दो अरज़-ओ-तूल खूंटों से बस्तियों के समेटो सडकें, लपेटो राहें उखाड़ दो शहर का कशीदा कि ईंट - गारे से घर नहीं बन सका किसी का

Jhadi (झड़ी)

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A beautiful nazm by Gulzar, from his book Pukhraaj: बंद शीशे के परे देख, दरीचों के उधर सब्ज़ पेड़ों पे, घनी शाखों पे, फूलों पे वहाँ कैसे चुपचाप बरसता है मुसलसल पानी

Lakeerein (लकीरें)

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हाथों की लकीरों को पढ़ना तो मुझे नहीं आता, हाँ ये ज़रूर मालूम है, की ये मेरी बात नहीं सुनती। कितना भी चाह लूँ, की किस्मत को पलट दूँ, खूब करके देख लिया, ये मेरी बात नहीं सुनती।