This one is from an album with Ghulam Ali, composed by Gulzar : खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में, एक पुराना खत खोला अनजाने में। शाम के साये बलिश्तों से नापे हैं, चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में।
A poem by Gulzar. Context : An old tree which has been his companion since childhood, is being cut down... मोड़ पे देखा है वो बूढा-सा एक पेड़ कभी ? मेरा वाक़िफ़ है, बहुत सालों से मैं उसे जानता हूँ। जब मैं छोटा था तो इक आम उड़ाने के लिए, परली दीवार से कन्धों पे चढ़ा था उसके, जाने दुखती हुई किस शाख से जा पाँव लगा, धाड़ से फ़ेंक दिया था मुझे नीचे उसने, मैंने खुन्नस मैं बहुत फेंके थे पत्थर उस पर।
ये पेड़, ये पत्ते, ये शाखें भी परेशान हो जाएं ! अगर परिंदे भी हिन्दू और मुस्लमान हो जाएं.... सूखे मेवे भी ये देख कर हैरान हो गए.., न जाने कब नारियल हिन्दू और खजूर मुसलमान हो गए......
A Gulzar composition from the Movie Dus Kahaniyaan (Love Dale) : मैं कुछ कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको, तेरा चेहरा भी धुंधलाने लगा है अब तख़ैयुल में, बदलने लग गया है अब वो सुबह-ओ-शाम का मामूल भी, जिसमें तुझसे मिलने का भी एक मामूल शामिल था।
Gulzar composition from the movie Masoom : हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिए, खुले आम आँचल न लहरा के चलिए। कोई मनचला गर पकड़ लेगा आँचल, ज़रा सोचिये आप क्या कीजियेगा, लगा दे अगर, बढ़ के ज़ुल्फ़ों में कलियाँ, तो क्या अपनों ज़ुल्फ़ें झटक दीजियेगा।
Gulzar's composition for the movie Ijaazat : क़तरा-क़तरा मिलती है, क़तरा-क़तरा जीने दो, ज़िन्दगी है (ज़िन्दगी है), बहने दो (बहने दो), प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो। कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था, नींद में थी, तुमने जब छुआ था, गिरते-गिरते बाहों में बची मैं,
Gulzar's composition for Gharonda: A stranger in a new city.... एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में, आब-ओ-दाना ढूंढता है, आशियाना ढूंढता है। दिन खाली-खाली बर्तन है, और रात है जैसे अँधा कुआं, इन सूनी अँधेरी आँखों में, आंसू की जगह आता है धुंआ।
A beautiful Ghazal sung by Ghulam Ali : फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था, सामने बैठा था मेरे, और वो मेरा ना था। वो की खुशबू की तरह फैला था मेरे चार सू, मैं उसे महसूस कर सकता था, छु सकता न था।