A poem by Gulzar from the movie Dus Kahaniyaan (Gubbaare) : तेरे उतारे हुए दिन, टंगे हैं लॉन में अब तक, न वो पुराने हुए हैं, न उन का रंग उतरा… कहीं से कोई भी सीवन अभी नहीं उधड़ी।
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
This is a Poem written by Gulzar for the Movie Dus Kahaniyaan (Pooranmasi) : एक रात चलो तामीर करें, ख़ामोशी के संगमरमर पर, हम तान के तारीखी सर पर , दो शम्माएं जलाये जिस्मों की।
A beautiful Ghazal sung by Mehdi Hassan : रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ। माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत, चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ।
उनके देखने से जो आ जाती है मुह पर रौनक़, वह समझते है की बीमार का हाल अच्छा है। ************************** Unke dekhne se jo aa jati hai munh par raunak, wo samajhte hain ki beemar ka haal acha hai... - Galib
इस क़दर तोडा है मुझे उस की बे-वफाई ने "ग़ालिब" अब कोई अगर प्यार से भी देखे तो बिखर् जाता हूँ मै। ***************************** Iss kadar toda hai mujhe uski bewafai ne Gaalib, Ab koi agar pyar se bhi dekhe to bikhar jaata hoon main...
दिल से बेहतर तो रावण है, साल में एक ही दिन जलता है, और जलता है तो राख हो जाता है, फिर कोई तड़प नहीं उठती उसको। *************************** Dil se behtar to Ravan hai, saal mein ek hi din jalta hai, aur jalta hai to raakh ho jata hai, phir koi tadap nahi uthti usko.... - Unknown
A Gulzar composition from the movie Ijaazat छोटी सी कहानी से, बारिशों के पानी से, सारी वादी भर गयी, न जाने क्यों, दिल भर गया, न जाने क्यों, आँख भर गयी।
A song from the movie Mausam, composed by Gulzar.. दिल ढूंढता है, फिर वही, फुर्सत के रात दिन, बैठे रहे, तसव्वुर-इ-जाना किये हुए। जाड़ों की नर्म धूप और, आँगन में लेट कर, आँखों पे खींच कर तेरे, आँचल के साये को, औंधे पड़े रहे कभी, करवट लिए हुए।
This is Gulzar's composition from the Movie Ijaazat. 'Mera kuchh saaman' earned Gulzar his first National Award for best lyrics. मेरा कुछ सामान, तुम्हारे पास पड़ा है सावन के कुछ भीगे-भीगे दिन रखे हैं और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पड़ी है वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
Gulzaar's composition, used in the movie Shaque : अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो! अभी तो टूटी है कच्ची मिटटी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं अभी तो किरदार ही बुझे हैं अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धडकते हैं दर्द दिल के अभी तो एहसास जी रहा है
This is a Gulzar composition from the Movie Ghulami. ज़िहाल-इ-मुस्कीन मुकून बा-रंजिश, बहाल-ऐ-हिजरा बेचारा दिल है। सुनाई देती है जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।
कुछ तबियत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत न हुई, जिस को चाहा उसे अपना न सके, जो मिला उस से मोहब्बत न हुई। जिस से जब तक मिले दिल ही से मिले, दिल जो बदला तो फ़साना बदला, रस्मे दुनिया की निभाने के लिए, हमसे रिश्तो की तिजारत न हुई।
A beautiful Ghazal written by Gulzar and sung by Jagjit Singh. Album - Marasim : वो खत के पुरज़े उड़ा रहा था, हवाओं का रूप दिखा रहा था। कुछ और भी हो गया नुमाया, मैं अपना लिखा मिटा रहा था।
Beautiful poem by Harivansh Rai Bachhan यहाँ सब कुछ बिकता है , दोस्तों रहना जरा संभाल के !!! बेचने वाले हवा भी बेच देते है , गुब्बारों में डाल के !!! सच बिकता है , झूट बिकता है, बिकती है हर कहानी !!!
जब बचपन था, तो जवानी एक ड्रीम था... जब जवान हुए, तो बचपन एक ज़माना था... !! जब घर में रहते थे, आज़ादी अच्छी लगती थी... आज आज़ादी है, फिर भी घर जाने की जल्दी रहती है... !!
आँख बंद थी तब, जब सपनो में आये थे तुम, रात घनी थी, ख्वाब सुहाने थे, नशा गहरा था। सपनों सी तुम दिखती,पलकों में तुम रहते, कब शभ आँख पे गिरा, कब टूटा सपना मेरा।
सुबह सुबह इक ख्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला, देखा सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आये हैं आँखों से मानूस थे सारे चेहरे सारे सुने सुनाये पाँव धोये, हाथ धुलाये
तब मैं जानबूझकर हार जाया करता था, अब चाह कर भी जीत नहीं पाता हूँ तुमसे, पता नहीं कौन सी चाल पर, देखते ही देखते मैं मात खा जाऊँ, ये डर तो लगता है ज़रूर, पर मैं ख़ुश हूँ कि तुम खेलना सीख गये…
1990 का दूरदर्शन और हम - सन्डे को सुबह-2 नहा-धो कर टीवी के सामने बैठ जाना "रंगोली"में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतज़ार करना "जंगल-बुक"देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना
मैं रोजगार क सिलसिले में, कभी कभी उसके शहर जाता हूँ, तो गुज़रता हूँ उस गली से, वो नीम तरीक सी गली। और उसी के नुक्कड़ पे, ऊंघता सा पुराना खम्बा, उसी के नीचे तमाम सब, इंतज़ार कर के, मैं छोड़ आया था, शहर उसका।
मुहब्बत भी अजब शय है बड़ी तकलीफ देती है, इसी में लुत्फ़ हैं सारे, यही तकलीफ देती है। यही दस्तूर है शायद वफादारी की दुनिया का, जिसे जी जान से चाहो वही तकलीफ देती है।
मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे, अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते, जब कोइ तागा टूट गया या खत्म हुआ, फिर से बांध के, और सिरा कोई जोड़ के उसमे, आगे बुनने लगते हो,
क़ुरान हाथों में लेके नाबीना एक नमाज़ी लबों पे रखता था, दोनों आँखों से चूमता था। झुकाके पेशानी यूँ अक़ीदत से छू रहा था, जो आयतें पढ़ नहीं सका, उन के लम्स महसूस कर रहा हो।
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख से लम्हें नहीं तोडा करते। जिसकी आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन, ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते।
एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी ऐसा तो कम ही होता है, वो भी हो तन्हाई भी। यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती है, कितनी सौन्दी लगती है तब मांझी की रुस्वाई भी।
For people in love for the first time : न जाने कहाँ से निकल रहा है ये शायराना, लिख तो हम ठीक से पेपर भी न पाते थे.... na jaane kahan se nikal raha hai ye shayarana, likh to hum theek se paper bhi na paate the.... - Deep
चाँद भी छिप जाता है उस के मुस्कुराने से, दिन भी ढल जाता है उस के उदास हो जाने से, क्यों वो नहीं समझ पाते हैं हाल-ऐ-दिल मेरा, के जीना छोड़ देते हैं उस के रूठ जाने से। chaand bhi chup jata hai uss ke muskurane se, din bhi dhal jata hai uss ke udas ho jaane se, kyu wo nahi samajh paate hain haal-e-dil mera, ke jeena chhod dete hain uss ke rooth jaane se... - Unknown
जब से उसने बारिश में भीगना छोड़ दिया, बादलों ने मेरे शहर में बरसना छोड़ दिया।।। Jab se usne baarish mein bheegna chhod diya, baadlon ne mere sheher mein barsana chhod diya !! - Unknown
Amitabh Bachchan pays his tribute to Delhi rape victim with his poem ------------- Must read ....Brings a tear to the eye. (Very moving) माँ बहुत दर्द सह कर, बहुत दर्द दे कर, तुझसे कुछ कह कर मैं जा रही हूँ।